नरकटियागंज

बिहार का सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनो छात्र राजनीति की देन फिर भी बिहार में छात्र सबसे ज्यादा बेरोजगार तथा परेशान:- रौशन कुमार

नरकटियागंज से अमित कुमार बरनवाल की रिपोर्ट

भारतीय विद्यार्थी परिषद् के प्रदेश सह मंत्री रौशन कुमार प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए बताया कि छात्रों की समस्यायों एवं उन्हें शैक्षणिक रोजगार से जोड़ने के लिए हमेशा ही सरकार, सत्ता एवं व्यवस्था में बैठे लोगों के आंखों पर से अंहकार की पट्टी हटाकर उसकी समस्यायों के समाधान के लिए बाध्य करते आ रही है। कोविंड 19 की भयंकर महामारी की आर में बिहार सरकार ने चोरी-छिपे STET की परीक्षा को रद्द कर छात्रों के रोजगार से जुड़ने के विकल्प को ही बंद कर दिया। शायद उनकी यह सोच है कि छात्र उनके इस निर्णय पर चुप्पी साध लेंगे और वह छात्रों के रोजगार के अवसर को कब्र में दफ़न कर देगी। इतना ही नहीं इस अहंकारी सरकार को अब बिहार के नौनिहाल छात्रों के भविष्य की भी चिंता नहीं रही है। इनके नाक के नीचे ही पटना में नौनिहाल छात्रों के अभिभावकों से प्राइवेट स्कूल संचालकों द्वारा कोविड-19 जैसे महामारी की प्रलयकारी समस्या में भी उन्हें धमका कर जबरन मासिक शुल्क वसूला जा रहा है। हालांकि यह दृश्य पुरे बिहार की है परंतु सत्तासीन मुकदर्शक बनी हुई है।
जिला संयोजक सुजित मिश्रा ने बताया कि छात्र राजनीति से ही निकले सत्ता और विपक्ष के राजनेता पता नहीं क्यों किसान-मजदूर के बच्चों की पढ़ाई में रूकावटें ला रही समस्याओं के समाधान तो दूर चर्चा के लिए चंद आवाज़ नहीं निकाल रही है। जिसके कारण बिहार के छात्र आज रूम रेंट व ट्यूशन फीस की समस्या के कारण पढ़ाई-लिखाई छोड़ने पर मजबूर हैं।
आज छात्रों की समस्यायों से भले सत्ताधारी सरकार, विपक्ष के नेता और सत्ता की लोभ में कुरमुत्ते की तरह उत्पन्न हुए छात्र संगठन चुप्पी साध बैठे है परंतु हम परिषद् के कार्यकर्ता इस महामारी के समय में भी अपने सेवा कार्य करते हुए एक सजग प्रहरी की तरह सोसल डिस्टेंस का पालन करते हुए विगत पिछले 23 मई 2020 से ही आंदोलन का आगाज कर चरणबद्ध आंदोलन करते आ रहे हैं। इस आंदोलन में बिहार के छात्रों ने बड़ी संख्या में अपनी सहभागिता निभाई। प्रदेश कार्यकारणी सदस्य चन्दन सैनी ने बताया कि पूर्व में भी हमने सरकार के निर्णय के खिलाफ एवं उनकी कुंभकर्णी नींद्रा को तोड़ने के लिए..
(क) “काला दिवस” पर आयोजित कार्यक्रम में पूरे बिहार के छात्रों ने हिस्सा लेते हुए 36,000 Tweet किए।
(ख) सरकार के खिलाफ धरना में 225 छात्रा के साथ 2,270 छात्रों ने हिस्सा लिया।
(ग) “पूछता है बिहार’ कार्यक्रम में 280 छात्रा सहित 2,878 छात्रों ने हिस्सा लिया।
(घ) सत्ता के मद में मस्त बिहार सरकार को छात्रों की समस्यायों पर विचार करने हेतु बिहार के 217 स्थानों पर 123 छात्रा सहित 1,606 छात्रों ने “सद्बुद्धि यज्ञ” किया।
(ड़) बिहार सरकार के E-Mail पर 6,076 छात्रों ने Mail कर उन्हे प्रत्यक्ष समस्याओं से अवगत कराया।
(च) हमने हजारो की संख्या म़े खुला पत्र भेजा।
(छ) जनप्रतिनिधियों का घेराव करते हुए अंतिम चरण में शैक्षणिक संस्थानों पर हजारों छात्रों के साथ प्रर्दशन किया।

इन आंदोलनों से घबराकर सरकार ने आनन-फानन में STET की रद्द परीक्षा को तीन माह के अंदर लेने की घोषणा तो कर दी है परन्तु रद्द करने हेतु जिन अनियमितता, अराजकता व भ्रष्टाचार उजागर हुए हैं उनपर अभी तक कोई कानूनी कार्रवाई करना तो दूर उनकी सूची तक जारी न करना सरकार की कुंठित मानसिकता को दर्शाता है। STET की परीक्षा पुणः लेने की पहल का परिषद् स्वागत तो करती है परन्तु पुनः संभावित भ्रष्टाचार की संभावनाओं का विरोध भी करती है। बिहार सरकार जिस बेल्ट्राॅन कम्पनी के माध्यम से तीन माह के अंदर परीक्षा लेने की घोषणा कर रही है उस कम्पनी के खिलाफ दर्जनों भ्रष्टाचार के मामले हाई कोर्ट में दर्ज हैं। बेल्ट्राॅन कम्पनी के भ्रष्टाचार का काला चेहरा प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सहित बिहार के जनमानस से छुपा हुआ नहीं है, फिर भी बिहार सरकार बेल्ट्राॅन कम्पनी द्वारा निष्पक्ष परीक्षा की गारंटी दे सकती है। नगर मंत्री आशीष ठाकुर ने बताया कि अगर सरकार गारंटी दे ही रही है तो सरकार समय रहते परीक्षा के तिथियों की घोषणा क्यों नहीं कर रही है ? आखिर सरकार क्यों नहीं यह स्पष्ट कर रही है कि, तीन महीने के अंदर किस प्रकार ये छात्र STET परीक्षा देकर सरकार द्वारा रोजगार के लिए घोषित नियोजन की प्रक्रिया में शामिल होंगे ? कहीं सरकार लाॅलिपाॅप दिखाकर, लोक-लुभावन घोषणाएं कर युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ तो नहीं कर रही है ?
प्रदेश कार्यकरणी सदस्य प्रशांत मौर्य ने बताया कि आज बिहार के अंदर प्रत्येक विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, विद्यालय, छात्रावास आदि सभी किसी न किसी समस्याया से घिरे हुए हैं। छात्र त्राहिमाम कर रहे हैं, अभिभावक आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। इस परिस्थिति में आखिर सरकार मौन क्यों हैं ? क्या सरकार पुणः युवाओं को भटकाकर, गुमराहकर एक बार फिर सत्ता हथियाना चाहती है ?

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् बिहार सरकार के दूषित मानसिकता को विफल कर छात्रों की समस्यायों को समाधान की ओर ले जाने के लिए, रोजगार के मुद्दे पर विफल हो रही सरकार को घेरने के लिए परिषद् द्वारा प्रदेश कार्यसमिति सदस्य की बैठक कर छात्र समस्या एवं रोजगार के विषय पर एक प्रस्ताव पारित किया गया। जिसे बाद में छात्र आंदोलन के यादगार दिन आपातकाल का वो “काला दिन” 25 जून 2020 को पुरे बिहार के जाने-माने 100 से ज्यादा छात्र नेताओं का सम्मेलन आयोजित किया गया। जिसमें बिहार की तमाम समस्याओं पर चर्चा करते हुए छात्र नेताओं ने बिहार में रोजगार के नाम पर छात्रों को गुमराह कर रही बिहार सरकार के खिलाफ एक सशक्त आंदोलन खड़ा करने की बात करते हुए परिषद् के प्रस्ताव को भी एक स्वर में अपनी सहमति प्रदान करते हुए सभी बन्धुओं ने संकल्प लिया।
इसकी आवश्यक्ता इसलिए भी है क्योंकि बिहार सरकार सत्ता के मद में इतनी मदमस्त हो गई है कि उसे समाज के दर्द भरे आंसू और छात्र युवाओं की बेरोजगारी के कारण टूटते-बिखरते सपने दिखाई नहीं दे रहे हैं।
शायद उसे लगता है कि, छात्र तरुणाईयों को अपनी पन्द्रह साल पुरानी सत्ता का भय दिखाकर पुणः सत्ता पर काबिज हो जाऐंगे तो यह उनकी सबसे बड़ी भूल है।
क्योंकि अब यह आंदोलन ना सिर्फ छात्रों के लिए, बल्कि समाज में सिसक-सिसककर बेरोजगारी की मार झेल रहे समस्त युवा वर्ग के लिए है। ये आंदोलन उन छोटे-छोटे नौनिहालों के लिए भी है जो कल “स्लेट की जगह प्लेट” पर ध्यान दे रहे बिहार सरकार के विद्यालय से नाम कटवाकर अपने उज्जवल भविष्य की कामना लिए प्राईवेट स्कूलों में नामांकन करवाकर पढ़ाई कर रहे थे। परन्तु आज कोविड-19 जैसे महामारी की मार के पश्चात प्राईवेट स्कूल संचालकों के शोषण नीति के सामने नतमस्तक होकर अपनी पढ़ाई को बीच में ही छोड़ने पर विवश हैं।
यह आंदोलन बिहार के उन किसानों, मज़दूरों व उनके बच्चों के भविष्य के लिए है, जिन्होंने अपने अरमानों का गला घोंटकर बच्चों को अच्छी शिक्षा के लिए बड़े शहरों में रूम किराए पर दिलाकर पढ़ाई करने भेजा था। आज वही बच्चे रूम रेंट एवं ट्यूशन फीस न दे पाने के कारण अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़कर पुनः मजदूरी करने के लिए मजबूर हो गये हैं।
साथियों, बिहार में बेरोजगारी की भयावह स्थिति से शायद ही कोई अपरिचित हो और जिस सुशासन की कल्पना कर हमारे युवा वर्ग ने रोजगार का सुनहरा सपना देखा था युवाओं को वह सपना आज चूर-चूर होता नज़र आ रहा है। क्योंकि एक बार पुणः सरकारी तंत्र के संरक्षण में बिहार में “शिक्षा माफियाओं” का बोलबाला चल रहा है।
इसलिए हमारा प्रयास रहा है, सरकार के बंद पड़े कानों में निश्पक्षता की आवाजज पहुंचे ताकि वह छात्र युवाओं के हित में निर्णय ले सके। अतः एक बार फिर आगामी 30 जून 2020 को पूरे बिहार में, एक साथ बिहार सरकार के खिलाफ हमारे आपके प्रयास से यह सवाल उठाए जाएंगे कि, “पूछता है बिहार, हमारे छात्र युवा क्यों हैं बेरोजगार”।
इसी प्रकार हम अभाविप विभिन्न तरीकों से आंदोलन करते हुए सरकार को “छात्र हित” एवं “रोजगार” पर उचित निर्णय लेने के लिए बाध्य करेंगे। साथ ही साथ इन चरणबद्ध आंदोलनों में हम सभी कोविड-19 से जुड़े सभी प्रोटोकॉल एवं शारीरिक दूरी का पालन करते हुए छात्रों व समाज के युवा वर्ग की आवाज़ को बुलंद करते रहेंगे। इस अवसर पर कन्हैया कुमार भी शामिल#news9times

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