पश्चिम चंपारण

चिकित्सा_की_मजबूरी_या_मरीजों_की_अज्ञानता_व_लाचारी#जवाबदेह_कौन?

चिकित्सा_की_मजबूरी_या_मरीजों_की_अज्ञानता_व_लाचारी#जवाबदेह_कौन?

न्यूज9 टाइम्स बेतिया से आशुतोष कुमार बरनवाल की ब्यूरो रिपोर्ट :-
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पश्चिम चम्पारण जिला का बेतिया राजाओं का गढ़ रहा है जिसे बेतिया राज के नाम से भी जाना जाता है। इसका साम्राज्य पश्चिम चम्पारण ही नहीं बिहार के अन्य जिलों, पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के साथ साथ विदेशों में भी बेतिया राज के नाम से जमीनें है जो कि समय-समय पर तत्कालीन महाराजाओं ने अपने बेतिया राज के नाम से लिया था। यहाँ के महाराजाओं के शौर्य और करूणामयी इसी बात से स्पष्ट हो जाती है कि उनके द्वारा अपने राजकीय कार्यकाल में अपनी प्रजा के लिए एक अस्पताल अपनी रानी महारानी जानकी कुंवर के नाम से बनवाई गई और उसके लिए एक डाक्टर और नर्स ब्रिटेन से वेतनमान पर मंगवाया गया था। यह सिर्फ निःस्वार्थ भाव से प्रजा के बेहतर स्वास्थ्य लाभ के लिए बेतिया महाराज के द्वारा किया गया। काल का चक्र घुमकर राज तंत्र से गुलामी में बदला और अब प्रजा तंत्र में बदल गया। परन्तु नहीं बदला वो अस्पताल जहां आज भी मरीजों का इलाज जारी है यह बात अलग है कि पहले सेवा भाव से इलाज होती थी और अब लूट खसोट और लालच के भाव से इलाज होती है। बेतिया महाराज की जिस पावन धरती पर स्वास्थ्य लाभ देना अपना धर्म और कर्म समझा जाता था वो अब अपने अपने तरह से दलाली और लूट खसोट का गढ़ बना हुआ है।
आज महारानी जानकी कुंवर अस्पताल (एमजेके अस्पताल) का नामकरण बदल कर गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज करके अरबों रूपयों के लागत से बिहार का उच्च स्तर का मेडिकल कॉलेज के साथ अस्पताल का निर्माण जारी है। आने वाले 4 से 5 सालों में यह काॅलेज बनकर बेतिया और आस पास के लिए समर्पित हो जाएगा परन्तु क्या इसका पूरा फायदा यहाँ लूटने खसोटने वाले तंत्र और तथाकथित मेडिकल से अपनी दलाली चलाकर अवैध कमाई करने वाले बिचौलियों के द्वारा इसका फायदा लाचार मरीजों और उनके साथ आएं परिजनों जो पढ़े लिखें और अनपढ़ दोनों होते हैं परन्तु अपने परिवार के जीवन बचाने के समय अपनी चेतना खोकर तुरंत बेहतर इलाज के लिए दलालों और फर्जी झोलाछाप चिकित्सकों के जाल में फंसकर धन, समय और जान तीनों को जोखिम में डाल देते हैं। परन्तु इन तीनों चीजों को गंवाने वाला शायद कभी जान पाता है कि जिसे वो अपना हमदर्द समझ कर मदद ले रहा था उसने कब उसको इलाज के नाम पर बेच दिया है। उसे तो लगता है कि सामने वाला उसकी मदद कर रहा है परन्तु सच्चाई कुछ और होती है।
बेतिया अस्पताल मार्ग और निजी चिकित्सको के इर्द-गिर्द इतनी संख्या में ऐसे लोग मौजूद हैं कि इनकी गिनती और पहचान भी कर पाना असंभव है और वो किस रूप में घूम रहे हैं यह भी पहचान पाना मुश्किल होता है।
आपको जानकर आश्चर्य होगा ऐसे लोग एक या दो नहीं अपितु सैकड़ों की तादात में इस कार्य में लगे हुए हैं। पहले वो बस टैम्पो और पैदल आते हैं पर चंद माहों में मोटर साइकिल और जमीन सम्पत्ति सबकुछ के अपने बल बूते मालिक बन बैठते हैं। खाली जेब आकर जेब भरकर जाने वाले पूरे सिस्टम को नासूर बनाकर लूटने खसोटने का हब बना दिया है।
दलालों के कारण औषधि दुकानदार से लेकर चिकित्सक तक सभी इससे हलकान रहते हैं। चिकित्सक इसलिए मजबूर होते हैं कि अगर आॅपरेशन में कमीशन और अन्य जांच, एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड इत्यादि नहीं देंगे तो ऐसे बिचौलियों के द्वारा मरीज बहला-फुसलाकर दूसरे चिकित्सक के पास पहुंचा दिया जाएगा और इस तरह का चलन हो जाने पर चिकित्सक भी अपने इसी चलन को अपना नियमित प्रक्रिया बना लेते हैं और शुरू हो जाता है मरीजों को लुटने का काम। चिकित्सकों द्वारा अपने लिखें कंपनी की दवा खरीदने को विवश करना भी चिकित्सा तंत्र को बर्बाद और भ्रष्ट कर रहा है और उसके बावजूद भी दलालों के द्वारा औषधि दुकानदारों से मिलकर अपना कमीशन तय करना कि हम मरीज लाएंगे आपको यह दवा देना है और हमको 10 से 20 प्रतिशत दवा में और सर्जिकल में तो कुछ पूछना ही नहीं है।दवा दुकानदार अपने चंद कमाई के कारण ऐसे दलालों से सम्पर्क कर लेते हैं और दवा की कंपनी बदलकर जेनरिक दवा प्रिंट रेट में देकर दलालों के जेब गरमा कर कुछ अपनी भी कमाई कर लेते हैं। बिना चिकित्सक के औषधी दुकान भी वैसे ही दलालों के माध्यम से अपनी दुकानदारी कर लेते हैं परन्तु दलाल बिना पूंजी के ही भरपूर कमाई करते हैं और दुकानदार पूंजी और अन्य खर्च करके भी वो कमाई नहीं कर पाते हैं। जिन बीमारियों में जांच और अन्य रिपोर्टों की जरूरत नहीं होने पर भी दलालों और बिचौलियों के द्वारा यह सब मरीज के जान का भय दिखाकर चिकित्सकों के द्वारा करवाया जाता है ताकि मरीज लाने के ऐवज में मेहनताना मिल सके। किसी भी तरह से मरीजों को नहीं छोड़ा जाता है बस आया है तो जितना उतार सकते हैं उतार लेना है ताकि आज का हमारा जेब भर जाए। ऐसे बिचौलियों से प्रेरित होकर अब चिकित्सा से जुड़े सभी दुकानदार, चिकित्सक, लैब, और एक्स-रे इत्यादि सभी जगह अब भ्रष्टाचार का बोलबाला हो रहा है।इलाज के नाम पर मरीज के साथ साथ अपनी पूंजी लगाकर इलाज में लगे अन्य लोग भी इस सिस्टम में घूट रहे हैं और लाचार बने हुए हैं। चाह कर भी मरीजों को सस्ते मूल्यों पर इलाज की सेवा नहीं दे पाना कहीं ना कहीं इन बिचौलियों के कारण भी है।
चिकित्सा में एक बार कोई सीरिंज पकड़ लेता है तो वो चिकित्सक के बराबर का ज्ञानी और महत्वाकांक्षी हो जाता है। गांव देहात से आने वाले मरीज अपनी जान पहचान की खोज इस जगह पर आकर करते हैं कि अच्छा इलाज करवा देंगे तथाकथित बबूआ लोग, और बबूआ लोग अपने गांव ज्वार के लोग को कब बेच देते हैं यह वो खुद भी नहीं जानता। वो तो अपने बबूआ को भगवान् ही मानता है कि बबूआ जहां कहिएन उहें से दवा और इलाज करवावल जाइ। ना त इलाज बढ़िया ना होई और इ सोच के साथ बबूआ के चांदी हो जाती है। अनपढ़ ऐसी बात करते हैं परन्तु पढ़े लिखे लोग भी बेहतर के चक्कर में ऐसे लोगों के भरोसे रहकर अपना धन और जान जोखिम में डाल लेते हैं। जब तक मरीज और परिजनों में जागरूकता नहीं आएगा तब तक चिकित्सा क्षेत्र से इलाज की खरीद बिक्री नहीं रुकेगी।किसी भी अन्य व्यवसाय में इतनी दलाली नहीं है जितनी चिकित्सा प्रणाली में। स्वयं जो चिकित्सा के जिम्मेदार अधिकारी है जिनके कारण चिकित्सा की ज्योत जलती है वो भी चंद स्वार्थ के कारण चंद लोगों से मजबूर होकर चिकित्सा जगत को धूमिल करते जा रहे हैं। आज मरीज अपना सर्वस्व गंवाकर भी अच्छी चिकित्सा लाभ लेने में असमर्थ हो जाता है। इन सबके बीच औषधी दुकानदार अपनी रोजी रोटी के लिए अपनी मुनाफा का एक मोटी कमीशन दलालों को दे देते हैं जिसका कहीं भी कोई ब्यौरा नहीं उपलब्ध हो सकता है। ऐसे लोगों के लिए ना तो बिक्री कर ना ही आयकर विभाग है क्योंकि ऐसों को पहचानना किसी के बस में नहीं है और ना ही उनकी आय का लेखा-जोखा रख पाना और खोज पाना।मरीज और परिजन भी जानबूझकर ऐसे लोगों से ही फंसते है। जिसे वो हिमायती समझते हैं वो अपनी कमाई इन्हीं विश्वास करने वालों से खाली हाथ आकर जेब भर करते हैं। दोनों के परस्पर इतना विश्वास होता है कि वो जैसा कहता है परिजन वैसा ही मानने को तैयार रहते हैं। हालात तो यह है कि ससुर दामाद के इलाज में और दामाद ससुर के इलाज में अपनी दलाली करते हैं। यहाँ कहने का तात्पर्य 18 साल से लेकर 60 साल तक के लोग इस बिचौलियों के रूप में कार्यरत हैं। कोई अपना बच्चा समझ और कोई बड़े श्रेष्ठ समझ कर इनसे फंस ही जाते हैं। ऐसे लोग केवल आपके साथ खड़े भी होकर चिकित्सक, औषधी विक्रेता और अन्य जांच घर, इत्यादि जगहों पर बिना बोलें खड़े भी हो जाए तो उनकी दलाली बन जाती है। अपनी धंधों के लिए सभी मजबूर है दलाली देने के लिए क्योंकि ऐसे लोग ही मरीजों को लेकर आते हैं तो अपनी कमाई के लिए सभी इस दलाली के खेल का हिस्सा बने रहते हैं।
जबतक मरीज और परिजन जागरूक नहीं बनेंगे और चिकित्सा के दरम्यान ऐसे लोगों से सहयोग लेना नहीं छोड़ेंगे तब तक वो अपना धन, समय और जान गंवाते रहेंगे। आज बेतिया की इन्हीं कुकृत्यों के कारण मरीजों का पलायन पड़ोसी राज्यों में बढ़ता जा रहा है और बेतिया की चिकित्सीय बाजार मंद होता जा रहा है। ऐसी स्थिति में सभी चिकित्सा से जुड़े लोग मिलकर मजबूत पहल नहीं करेंगे तो आने वाले समय में मरीजों का विश्वास बेतिया चिकित्सा बाजार खो देगी और इसका बड़ा खामियाजा चिकित्सा जगत को उठाना पड़ेगा।

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